West Bengal Ram Navami Politics; BJP Vs RSS | Election 2026 | क्या हिंदुवादी एजेंडे से बंगाल जीतेगी भाजपा, 2026 में चुनाव: भागवत ने स्ट्रेटेजी तय की; 4% वोट बन सकता है गेम चेंजर

West Bengal Ram Navami Politics; BJP Vs RSS | Election 2026 | क्या हिंदुवादी एजेंडे से बंगाल जीतेगी भाजपा, 2026 में चुनाव: भागवत ने स्ट्रेटेजी तय की; 4% वोट बन सकता है गेम चेंजर


कोलकाता53 मिनट पहलेलेखक: सुदर्शना चक्रवर्ती

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पश्चिम बंगाल में अगले साल मार्च-अप्रैल में विधानसभा चुनाव होंगे। चुनावी सुगबुगाहट अभी से शुरू हो गई है। रामनवमी और हनुमान जयंती पर इसकी झलक भी दिखी, जब तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने हजारों शोभायात्राओं और रैलियों के जरिए एक दूसरे के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन किया।

भाजपा 2021 में पहली बार बंगाल में विपक्षी पार्टी बनी थी। वह 2026 में TMC को कांटे की टक्कर देने की कवायद में है। हालांकि, भाजपा के लिए यह सब अकेले करना आसान नहीं होगा। ऐसे में हरियाणा और दिल्ली की तरह RSS बंगाल में भी उसकी ढाल बनने की कोशिश कर रहा है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत फरवरी में 10 दिनों के लिए बंगाल दौरे पर थे। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान भागवत ने भाजपा की जीत के लिए ब्लूप्रिंट तैयार किया। एक्सपर्ट कहते हैं कि भाजपा ने अगर TMC के वोट बैंक में 4% की सेंध लगा दी, तो यह 2026 के चुनाव में गेम चेंजर साबित हो सकता है।

भाजपा 70% हिंदू आबादी को साधने में जुटी बंगाल में 70% हिंदू और 30% मुस्लिम आबादी है। मुस्लिम वोटरों की एकजुटता के कारण TMC हर चुनाव में मजबूत खड़ी होती है। हालांकि, हिंदुओं का वोट TMC और भाजपा में बंट जाता है।

2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 50% हिंदुओं और 7% मुस्लिमों को वोट मिला था। वहीं, TMC को 39% हिंदुओं और 75% मुस्लिमों ने वोट दिया। ऐसे में भाजपा 2026 चुनाव से पहले हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश कर रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा हिंदू वोट उसे मिले।

इसके लिए भाजपा, संघ और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने 6 अप्रैल को रामनवमी से 12 अप्रैल को हनुमान जयंती तक पूरे राज्य में धार्मिक शोभायात्राओं और रैलियां निकालने में पूरी ताकत झोंक दी।

दूसरी तरफ, सत्ताधारी पार्टी इस उहापोह में रही कि खुद को हिंदू विरोधी न दिखने दिया जाए। एंटी-हिंदू इमेज से बचने के लिए TMC को भी रामनवमी पर रैलियां निकालकर यह बताना पड़ा कि वह हिंदू विरोधी नहीं है।

रामनवमी के कार्यक्रमों की कुछ झलकियां…

कोलकाता के जादवपुर यूनिवर्सिटी में पहली बार रामनवमी पर पूजा की गई।

कोलकाता के जादवपुर यूनिवर्सिटी में पहली बार रामनवमी पर पूजा की गई।

पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने रामनवमी पर नंदीग्राम में राम मंदिर की नींव रखी।

पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने रामनवमी पर नंदीग्राम में राम मंदिर की नींव रखी।

कोलकाता में TMC नेता कुणाल घोष ने लोगों के साथ रामनवमी जुलूस में हिस्सा लिया।

कोलकाता में TMC नेता कुणाल घोष ने लोगों के साथ रामनवमी जुलूस में हिस्सा लिया।

रामराज्य की स्थापना के लिए एकजुट हुए हिंदू: VHP बंगाल में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने भाजपा और संघ के बैनर तले रामनवमी पर रैलियों को लीड किया। दक्षिण बंगाल में VHP के सेक्रेटरी चंद्रनाथ दास ने बताया, ‘हमने राज्य भर में 3000 से ज्यादा रैलियां निकालीं, जिसमें लगभग 2.5 करोड़ लोग शामिल हुए थे।

‘बंगाल में इतना भव्य रामनवमी उत्सव कभी नहीं मना। राज्य सरकार, पुलिस और मुस्लिम समुदाय की धमकियों को नजरअंदाज करते हुए करोड़ों बंगाली हिंदू सड़कों पर उतरे और रामराज्य की स्थापना के लिए एकजुटता दिखाई।’

क्या रामनवमी का 2026 के चुनाव पर कोई असर होगा? इसके जवाब में दास ने कहा, ‘VHP धार्मिक संगठन है। यह चुनाव के लिए काम नहीं करता। हमारा काम चुनावी नतीजों में बदलाव जरूर ला सकता है, क्योंकि हम लोगों को सही और गलत बताते हैं।’

‘बंगाल में भाजपा रामनवमी उत्सव के कारण मजबूत हुई’ भाजपा नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी मानते हैं कि 2026 के चुनाव में भाजपा पूरी तरह हिंदू वोटरों के समर्थन पर निर्भर है। उन्होंने कहा, ‘बंगाल में 10-12 सालों के दौरान भाजपा मजबूत हुई है। पार्टी पिछले तीन विधानसभा चुनावों में जीरो से 77 सीटों तक पहुंची है। इसमें रामनवमी का सबसे बड़ा योगदान है। बंगाल में पहले रामनवमी नहीं मनाई जाती थी, लेकिन अब यह एक त्योहार बन गया है।’

‘ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। हिंदुओं को एहसास होने लगा है कि सत्ताधारी पार्टी उनका साथ नहीं देती है। हिंदू सुरक्षित और एकजुट होना चाहते है। बंगाल में रामनवमी उत्सव की सफलता का यही सबसे बड़ा कारण है। रामनवमी पर पहले लोगों के बीच डर का माहौल रहता था। अब ऐसा नहीं होता। लोग बड़ी संख्या में शोभायात्राओं में शामिल होते हैं।’

भागवत ने बंगाल दौरे पर हिंदुओं को संघ से जुड़ने की अपील की 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए थे। इसके अगले दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत बंगाल दौरे पर आए। 7 फरवरी से 16 फरवरी के दौरान वे बंगाल के मध्य और दक्षिण प्रांत में गए, जहां संघ की सबसे ज्यादा शाखाएं हैं। कोलकाता और वर्धमान में उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ बैठक की। हालांकि, इसमें क्या बातें हुई, यह सामने नहीं आई।

भागवत ने 16 फरवरी को वर्धमान में RSS के एक कार्यक्रम में कहा-

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संघ हिंदू समाज को एकजुट करना चाहता है, क्योंकि देश का जिम्मेदार समाज हिंदू समाज है। मेरी अपील है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में संघ से जुड़िए। कोई फीस नहीं लगेगी। कोई मेंबरशिप नहीं है। आप बस आइए और देखिए कि हम कैसे काम करते हैं। अगर पसंद न आए तो अपनी मर्जी से बाहर जा सकते हैं।

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16 फरवरी को वर्धमान में स्वयंसेवकों को संबोधित करते मोहन भागवत।

16 फरवरी को वर्धमान में स्वयंसेवकों को संबोधित करते मोहन भागवत।

भागवत के बंगाल से जाने के बाद संघ ने 1 और 2 मार्च को हावड़ा में भाजपा नेताओं के साथ बैठक की। सूत्रों ने बताया कि बैठक का मुख्य एजेंडा 2026 विधानसभा चुनाव था। बंगाल में चुनाव से पहले भाजपा एक करोड़ सदस्यों को जोड़ने के अपने लक्ष्य में कहां तक पहुंची है और अपना आधार मजबूत कैसे कर सकती है, इसकी रणनीतियों पर चर्चा की गई। संघ ने भाजपा को बंगाल में हिंदू एजेंडा फैलाने का भी निर्देश दिया।

बंगाल में हिंदुओं को अपनी विचारधारा से जोड़ने की संघ की कवायद नई नहीं है। वह बंगाल में लंबे समय से इसकी कोशिश कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि बीते दो साल में संघ ने बंगाल में अपना दायरा तेजी से बढ़ाया है। 2023 में बंगाल में संघ की कुल 3,560 शाखाएं थीं, जो 2025 में 4,540 हो गई हैं।

भागवत से मुलाकात नहीं, पर संघ की बैठक में पहुंचे भाजपा नेता संघ-भाजपा की बैठक में RSS से जुड़े सभी 27 संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बंगाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार, विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी शामिल थे। हालांकि, भागवत ने बंगाल दौरे पर तीनों से मुलाकात नहीं की थी। इससे संघ और बंगाल भाजपा के बीच नाराजगी की अटकलों को हवा मिली।

संघ के स्टेट सेक्रेटरी जिश्नु बसु ने इन अटकलों को खारिज किया। उन्होंने कहा, ‘भागवत हर दूसरे साल संघ के प्रचार-प्रसार के लिए बंगाल आते हैं। उन्होंने संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया, स्वयंसेवकों से मिले। भाजपा नेताओं से उनका मिलना जरूरी नहीं था।’

‘संघ प्रमुख ने 2026 के चुनाव को लेकर भी कोई चर्चा नहीं की। न ही भाजपा को कोई निर्देश दिया। वह पार्टी को सिर्फ सुझाव देते हैं, वह भी तब जब बहुत रणनीतिक बात हो। अगर भाजपा को बंगाल विधानसभा चुनाव में संघ की जरूरत पड़ती है, तो हम हर तरीके से उसकी मदद करेंगे।’

भाजपा विधायक बोलीं- संघ के बिना जीत मुमकिन नहीं भाजपा विधायक और बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष अग्निमित्रा पॉल कहती हैं, ‘हम ममता बनर्जी को आसान कॉम्पिटिटर के तौर पर नहीं देख रहे हैं। मुस्लिम और महिलाएं उनका सबसे बड़ा वोट बैंक है। संघ के साथ के बिना बंगाल में चुनाव जीतना संभव नहीं है। भागवत के दौरे के बाद हमें भरोसा मिला है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली की तरह बंगाल में भी चुनाव जीत सकते हैं।’

‘अगर ममता फिर से सत्ता में आईं तो अनगिनत बांग्लादेशी मुसलमानों और रोहिंग्याओं को राज्य में घुसने की इजाजत दे देंगी। सबको वोटिंग का अधिकार मिल जाएगा। ऐसा हुआ तो एक दिन कोई मुसलमान पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बन जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएंगे। इसलिए 2026 का चुनाव हमारे लिए आखिरी मौका है।’

अग्निमित्रा कहती हैं, ‘TMC ने भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी के रूप में प्रजेंट किया है, क्योंकि हम हिंदुओं के लिए आवाज उठाते हैं। ममता सरकार ने लोगों के बीच यह नैरेटिव बनाया है कि हम हिंदू-मुस्लिम करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हैं। किसी मुस्लिम महिला के साथ भी गलत होने पर हम उसकी मदद करते हैं।’

‘ममता बनर्जी मुस्लिमों के अधिकार की बात करती हैं, लेकिन उनके विकास के लिए कुछ नहीं किया है। सबसे ज्यादा गरीब मुस्लिम बंगाल में हैं। गुजरात भाजपा शासित राज्य है, वहां देश के सबसे अमीर मुसलमान रहते हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम कारोबारी और निवेशक यूपी और गुजरात में हैं। हम बंगाल के लोगों को बताएंगे कि भाजपा शासित राज्यों में कितना विकास हो रहा है।’

योग के जरिए महिलाओं तक अपनी विचारधारा पहुंचा रहा संघ बंगाल में RSS की महिला विंग राष्ट्रीय सेविका समिति की सेक्रेटरी मौसमी सरकार कहती हैं, ‘हमने भाजपा और RSS की 1-2 मार्च की मीटिंग में महिला सुरक्षा का मुद्दा उठाया था। हमारा फोकस महिलाओं को सुरक्षा देना है। 2026 में महिलाओं के सपोर्ट के बिना जीतना मुश्किल है। हम योग ट्रेनिंग के जरिए महिलाओं को अपनी विचारधारा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।’

‘हम लड़कियों को लव जिहाद जैसे मुद्दों के बारे में बताते हैं। ममता सरकार बंगाल में लव जिहाद नहीं रोक पा रही है। हमारी टीम कॉलेजों, कोचिंग संस्थान और हॉस्टल्स में जाकर लड़कियों से इन मुद्दों पर बात करती हैं।’

एक्सपर्ट: बंगाल में भाजपा का कैंपेन एंटी-मुस्लिम भाजपा और संघ की स्ट्रेटेजी को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट और प्रोफेसर मैदुल इस्लाम कहते हैं, ‘भाजपा चाहती है कि 2026 के चुनाव में उसे बंगाल के 70% हिंदुओं का एकतरफा समर्थन मिले। हिंदू वोटर्स को एकजुट करने के लिए वह बांग्लादेशी घुसपैठ और हिंदुओं पर हिंसा के मुद्दों को हवा देगी।’

‘हालांकि, भाजपा के पास TMC के क्षेत्रीयवाद वाले एजेंडे का मुकाबला करने का कोई तोड़ नहीं है। न ही उसके पास कोई बड़ा बंगाली चेहरा है, जिसकी बदौलत चुनाव जीता जा सके। हिंदूवादी विचारधारा ही भाजपा का सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन इससे चुनाव में कितना फायदा मिलेगा, यह कहना मुश्किल है।’

‘बंगाल के लोग राजनीतिक स्थिरता में भरोसा रखते हैं। यहां हर 5 साल में सरकार नहीं बदलती। 2011 से ममता बनर्जी के नेतृत्व में TMC की सरकार है। उससे पहले CPI (M) 34 सालों तक सत्ता में थी। यहां लोगों के बीच क्षेत्रीय भावना इतनी मजबूत है कि 1971 के लोकसभा और 1972 के विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल में कभी भी नेशनल पार्टियों की सरकार नहीं बनी।’

मैदुल कहते हैं, ‘TMC की सबसे बड़ी ताकत यही है कि वह बंगाल की पार्टी है। राज्य के लोग उससे ज्यादा कनेक्ट करते हैं। 2021 में TMC का चुनावी नारा किसे याद नहीं है- बांग्ला निजेर मेयेकेई चाय यानी बंगाल को अपनी बेटी चाहिए। TMC ने भाजपा को हमेशा उत्तर भारत की और बाहरी पार्टी बताया है।’

‘भागवत के हालिया बंगाल दौरे से साफ है कि वह चुनाव से पहले राज्य में संघ का दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि भाजपा के पास कार्यकर्ताओं का मजबूत संगठन नहीं है। बूथ लेवल पर उसकी पहुंच अभी भी कमजोर है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका उदाहरण भी देखने को मिला था।’

‘2024 में भाजपा बिना किसी पॉलिटिकल नैरेटिव के CM ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी। संघ का फोकस भी यूपी, बिहार पर था, क्योंकि वहां चुनावी फेज बंगाल के साथ ओवरलैप हो रहे थे। जबकि TMC के पास भाजपा के खिलाफ न सिर्फ मुद्दा था, बल्कि ग्राउंड लेवल पर बूथ मैनेजमेंट भी दुरुस्त था।’

‘इसका असर चुनावी नतीजों पर दिखा। TMC ने 42 में से 29 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को 6 सीटों के नुकसान के साथ सिर्फ 12 सीटें मिलीं। 2019 में पार्टी ने 18 सीटें जीती थीं। तब संघ-भाजपा के बीच अच्छा तालमेल था। देश भर से आए संघ कार्यकर्ता और प्रचारकों ने कई हफ्ते भाजपा के लिए प्रचार किया था।’

‘2024 में भाजपा का वोट शेयर भी गिरा। भाजपा को 39.08% वोट मिले थे, जबकि TMC को 46.16% वोट मिले थे। वोट शेयर के गणित के हिसाब से देखा जाए तो अगर भाजपा 2026 में TMC के खाते का 4% वोट अपनी तरफ ले आती है तो उसका वोट शेयर 43% हो सकता है। वहीं, TMC का वोट शेयर 42% हो जाएगा। सिर्फ 4% वोट भाजपा के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है।’

एक्सपर्ट: 2026 में भाजपा के प्रदर्शन में सुधार की संभावना कम बंगाल में सीनियर जर्नलिस्ट सुवोजित बागची कहते हैं, ‘विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की क्या रणनीति होगी, यह चुनाव से कुछ महीने पहले ही पता चल पाएगा। अभी नहीं लगता कि भाजपा का प्रदर्शन 2021 के मुकाबले सुधर पाएगा या वह पिछली बार के नतीजों पर कायम रह पाएगी। केंद्र में भाजपा के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी का माहौल है। सत्ता विरोधी लहर के कारण ही भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में 6 सीटें गंवानी पड़ी।’

‘सत्ता विरोधी लहर हर चुनाव के साथ बढ़ती है। सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ता है। केंद्र में भाजपा की तरह बंगाल में TMC के खिलाफ भी लोगों में नाराजगी है। पार्टी अंदर से बहुत अव्यवस्थित है, लेकिन भाजपा इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रही।’

सुवोजित कहते हैं, ‘2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बाहरी लोगों को बंगाल में लाने की कोशिश की, लेकिन इस स्ट्रैटजी ने उसके समर्थकों को बंगाली और गैर-बंगाली खेमे में बांट दिया। हालांकि भाजपा का हिंदुत्ववादी एजेंडा काम कर गया और पार्टी ने 77 सीटें जीतीं।

‘भाजपा ने एंटी-इनकम्बेंसी का इस्तेमाल किया होता, तो उसकी सीटें बढ़तीं। उसके पास वोट हैं, जो सीटों में नहीं बदल रहे हैं। उन्हें हर चुनाव में 36-40% के बीच वोट मिल रहे हैं। इसका मतलब है कि बंगाल में भाजपा के पास अब एक खास संख्या में वोट बैंक हैं। TMC भाजपा के वोट शेयर को कम नहीं कर पा रही है।’

हिंदुओं पर हिंसा से ममता की मुश्किलें बढ़ने की संभावना भाजपा और संघ की तैयारियों के बीच सीएम ममता बनर्जी भी चुनावी बिगुल बजा चुकी हैं। उन्होंने 27 फरवरी को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में पार्टी के नेताओं के साथ मीटिंग की और विधानसभा चुनाव में 215 से ज्यादा सीटें जीतने का टारगेट रखा।

हालांकि TMC के लिए 2026 का चुनाव इतना आसान भी नहीं होगा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े 25,000 से ज्यादा लोगों की नौकरियां रद्द कर दीं, जिससे ममता सरकार को बड़ा झटका लगा है।

ममता के लिए एक और संकट केंद्र का नया वक्फ कानून बना हुआ है, जिसके लागू होने के बाद मुर्शिदाबाद सहित कई जिले में हिंदुओं के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए। हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई और कई पुलिसकर्मी घायल हुए।

हिंसा के बीच भाजपा यह आरोप लगा रही है कि ममता हिंदुओं की सुरक्षा नहीं कर पा रही हैं। इससे TMC के खिलाफ हिंदुओं की नाराजगी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर बंगाल में हिंदू आबादी 2026 के चुनावी नतीजों में बड़ा फेरबदल कर सकती है। भाजपा की हिंदुवादी एजेंडे के खिलाफ अब TMC क्या रणनीति अपनाएगी, आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा।

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