Supreme Court Hearing Update; Lokpal Order Vs High Court Judge | हाईकोर्ट के जज लोकपाल के दायरे में या उससे बाहर: सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, अधिकार क्षेत्र पर लोकपाल के आदेश को डिस्टर्बिंग कहा था
नई दिल्ली19 मिनट पहले कॉपी लिंक क्या लोकपाल, हाईकोर्ट के मौजूदा जजों के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई कर सकता है। क्या लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013, लोकपाल को जजों के खिलाफ आरोपों की जांच करने की परमिशन देता है। आज सुप्रीम कोर्ट में अधिकार क्षेत्र से जुड़े इसी मामले पर सुनवाई होगी।…
नई दिल्ली19 मिनट पहले
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क्या लोकपाल, हाईकोर्ट के मौजूदा जजों के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई कर सकता है। क्या लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013, लोकपाल को जजों के खिलाफ आरोपों की जांच करने की परमिशन देता है। आज सुप्रीम कोर्ट में अधिकार क्षेत्र से जुड़े इसी मामले पर सुनवाई होगी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के 27 जनवरी के एक आदेश पर एक्शन लिया था। जिसमें कहा गया था कि लोकपाल के पास हाईकोर्ट जज के खिलाफ दर्ज शिकायतें सुनने का अधिकार है। 20 फरवरी को आदेश पर रोक लगा दी गई। तब जस्टिस गवई ने कहा था कि यह बहुत ही परेशान करने वाली बात है।
यह पूरा मामला एक हाईकोर्ट के जज और एडीशनल जज के खिलाफ दायर केस से जुड़ा है। जिन पर आरोप थे कि उन्होंने एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मदद के लिए एडवोकेट रंजीत कुमार को एमिकस क्यूरी बनाया था। 15 अप्रैल की सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि वह 30 अप्रैल को दलीलें सुनेगा। जरूरत पड़ी तो सुनवाई दूसर दिन भी होगी।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस सूर्यकांत ने मामले पर केंद्र, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
लोकपाल का आदेश, जिसने अधिकार क्षेत्र का विवाद उठाया
27 जनवरी 2025 को, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा था कि संसद के अधिनियमों द्वारा स्थापित हाईकोर्ट के जज, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की धारा 14 के दायरे में आते हैं। इसलिए वह अपने पास आने वाली उन शिकायतों की जांच कर सकता है, जो हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ हैं।

केंद्र सरकार की 2 दलीलें…
- 18 मार्च की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था- हाईकोर्ट के जज कभी भी लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के दायरे में नहीं आएंगे।
- लोकपाल अधिनियम की सिर्फ एक धारा की जांच की जानी है। सीमित मुद्दा यह है कि क्या जजों के खिलाफ शिकायतें सुनने का अधिकार लोकपाल के पास है। इसका तरीका और तंत्र क्या होना चाहिए।
जस्टिस गवई ने कहा था 1999 में बन चुका है जांच का सिस्टम
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि जजों के खिलाफ शिकायतें सुनने का एक सिस्टम पहले से है। सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गवई 1999 में सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई इन-हाउस प्रक्रिया की बात कर रहे थे। यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के मौजूदा जजों के खिलाफ कदाचार के आरोपों को लेकर बनाई गई थी।
किसी भी जज के खिलाफ शिकायत के लिए CJI की परमिशन जरूरी
वर्तमान में जो सिस्टम है उसके तहत किसी भी जज के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी लेनी होती है। यह नियम के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991) में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के बाद बना। इस केस में कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का जज भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत एक ‘लोक सेवक’ है।
इस फैसले के बाद ही जजों को सुरक्षा देते हुए कहा गया कि CJI की पूर्व मंजूरी के बिना किसी जज के खिलाफ कोई जांच आगे नहीं बढ़ सकती।
मौजूदा मामले में कोर्ट ने कहा कि जज आपराधिक दायित्व से मुक्त नहीं हैं, लेकिन उन्हें तुच्छ या राजनीति से प्रेरित आरोपों से बचाया जाना चाहिए। नहीं तो न्यायिक अखंडता कमजोर हो जाएगी।
लोकपाल ने अधिकार क्षेत्र पर CJI से मार्गदर्शन मांगा था
जस्टिस खानविलकर की बेंच ने तर्क दिया कि चूंकि कई हाईकोर्ट शुरू में ब्रिटिश शासन के तहत स्थापित किए गए थे, जिन्हें बाद में भारतीय संविधान के तहत मान्यता प्राप्त हुई, इसलिए उन्हें संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित संस्थान माना जाना चाहिए। इस प्रकार उनके न्यायाधीश 2013 अधिनियम के दायरे में आ जाएंगे। अपने अधिकार क्षेत्र की पुष्टि करने के बावजूद, लोकपाल ने आगे बढ़ने से पहले CJI से मार्गदर्शन लेने का विकल्प चुना और शिकायतों पर कार्रवाई स्थगित कर दी।
क्या है लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 एक केंद्रीय कानून है जिसे भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी ढंग से लड़ने और जनता के शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से बनाया गया था। यह अधिनियम लोकपाल (केंद्र स्तर पर) और लोकायुक्त (राज्य स्तर पर) की स्थापना का प्रावधान करता है। यह कानून 1 जनवरी 2014 से प्रभाव में आया।
पहला लोकपाल जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को मार्च 2019 में नियुक्त किया गया। लोकपाल को अदालत जैसी शक्तियां प्राप्त हैं। वह अभियोजन की सिफारिश कर सकता है और कार्रवाई का आदेश भी दे सकता है।
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