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If the Supreme Court amends the Constitution, what will the Houses do? | संविधान संशोधन सुप्रीम कोर्ट करेगा तो सदन क्या करेंगे: केरल के राज्यपाल बोले- संविधान में बिल पर निर्णय लेने की समय सीमा नहीं

VedVision HeadLines April 13, 2025
If the Supreme Court amends the Constitution, what will the Houses do? | संविधान संशोधन सुप्रीम कोर्ट करेगा तो सदन क्या करेंगे: केरल के राज्यपाल बोले- संविधान में बिल पर निर्णय लेने की समय सीमा नहीं


नई दिल्ली16 मिनट पहले

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केरल राज्यपाल ने कहा- संविधान में गवर्नर के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा नहीं है। कोर्ट द्वारा 3 महीने की सीमा तय करना संविधान संशोधन जैसा है। - Dainik Bhaskar

केरल राज्यपाल ने कहा- संविधान में गवर्नर के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा नहीं है। कोर्ट द्वारा 3 महीने की सीमा तय करना संविधान संशोधन जैसा है।

केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ज्यूडिशियल ओवररीच बताया है। ज्यूडिशियल ओवररीच का मतलब कोर्ट का सीमा पार कर कार्यपालिका और विधायिका में दखल होता है। उन्होंने आगे कहा, कोर्ट संविधान संशोधन करेगा, तो संसद और विधानसभा की क्या भूमिका रहेगी?

केरल राज्यपाल ने कहा- संविधान में गवर्नर के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा नहीं है। कोर्ट द्वारा 3 महीने की सीमा तय करना संविधान संशोधन जैसा है। दो जज संविधान का स्वरूप नहीं बदल सकते। न्यायपालिका खुद मामलों को वर्षों लंबित रखती है, ऐसे में राज्यपाल के पास भी कारण हो सकते हैं।

उन्होंने कहा, केरल राजभवन में कोई बिल लंबित नहीं है। कुछ बिल राष्ट्रपति को भेजे गए हैं। गौरतलब है कि केरल सरकार भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गई है, जिस पर 13 मई को सुनवाई है। केरल सरकार ने सीजेआई संजीव खन्ना से अपना केस जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच को भेजने का आग्रह किया है।

SC ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की

अपनी तरह के पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने देश के राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया।

शुक्रवार रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा-

राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।

गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स

1. फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं।

2. ज्यूडिशियल रिव्यू: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा।

अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा।

3. राज्य को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे।

4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी।

राज्यपालों के लिए भी समय सीमा तय की थी, कहा था- वीटो पावर नहीं

8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के मामले पर गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया। कोर्ट ने कहा कि यह मनमाना कदम है और कानून के नजरिए से सही नहीं। राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी। अदालत ने कहा था कि विधानसभा से पास बिल पर राज्यपाल एक महीने के भीतर कदम उठाएं।

फोटो 18 नवंबर 2023 की है। जब CM एमके स्टालिन ने विधानसभा के विशेष सत्र में 10 बिल पास किए थे।

फोटो 18 नवंबर 2023 की है। जब CM एमके स्टालिन ने विधानसभा के विशेष सत्र में 10 बिल पास किए थे।

सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के जरूरी बिलों को रोककर रखा है। बता दें कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में काम कर चुके पूर्व IPS अधिकारी आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था।

पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने फैसले की सराहना की

पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए अब केन्द्र सरकार जानबूझ कर राज्यों के बिलों पर फैसला लेने में देरी नही करवा सकेगी। उन्होंने कहा कि अटार्नी जनरल ने समय-सीमा निर्धारित करने के निर्णय का विरोध किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के विपरीत रुख को खारिज कर दिया।

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ये खबर भी पढ़ें…

तमिलनाडु के 10 बिल रोकने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त:राज्यपाल के फैसले को बताया अवैध, कहा- आप संविधान से चलें, पार्टियों की मर्जी से नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (8 अप्रैल) को ऐतिहासिक फैसले में राज्यपालों के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है।’ पूरी खबर पढ़ें…

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