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पुणे11 मिनट पहले
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महाराष्ट्र में 17 अप्रैल को थ्री लेंग्वेज पॉलिसी लागू की गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हिंदी भाषा को राज्य पर थोपा नहीं जा रहा है। हमें यह समझने की जरूरत है कि मराठी के बजाय हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। मराठी भाषा अनिवार्य है।
उन्होंने कहा- नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि छात्रों को पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से दो भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति ने तीन भाषाएं सीखने का अवसर प्रदान किया है। भाषा सीखना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि नियम कहता है कि इन तीन भाषाओं में से दो भारतीय होनी चाहिए। मराठी को पहले से ही अनिवार्य किया जा रहा है। आप हिंदी, तमिल, मलयालम या गुजराती के अलावा कोई अन्य भाषा नहीं ले सकते।
वहीं, महाराष्ट्र सरकार की भाषा परामर्श समिति ने रविवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया।
दरअसल, महाराष्ट्र में विपक्षी दलों खासकर शिवसेना (UBT) और मनसे ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के जरिए न्यू एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के तहत तीन-भाषा फार्मूले को लागू करने की मंजूरी दिए जाने के बाद महाराष्ट्र में हिंदी थोपी जा रही है।

भाषा परामर्श समिति का हिंदी अनिवार्य बनाने के फैसला वापस लेने का आग्रह
CM फडणवीस को लिखे पत्र में भाषा परामर्श समिति के प्रमुख लक्ष्मीकांत देशमुख ने दावा किया कि एससीईआरटी (राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) ने हिंदी को आगे बढ़ाने से पहले उनके विचारों और सुझावों पर विचार नहीं किया।
पत्र में 3 बातें विशेष रूप से कही गईं..
- सरकार ने भाषा के मामलों पर सलाह देने के लिए एक भाषा परामर्श समिति नियुक्त की है, लेकिन एससीईआरटी ने पैनल पर विचार नहीं किया है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। इसके विपरीत, एनईपी में कहा गया है कि शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए। इसलिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाना सही नहीं है।
- हिंदी को शिक्षा के किसी भी स्तर पर अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके बजाय हिंदी का यथासंभव कम उपयोग करने की नीति अपनाई जानी चाहिए। हिंदी रोजगार, आय, प्रतिष्ठा या ज्ञान की भाषा नहीं है।

शिक्षा मंत्री केसरकर बोले- हिंदी पहले से ही अनिवार्य थी
राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि छात्रों को भाषा की बुनियादी समझ प्रदान करने के लिए हिंदी केवल कक्षा 1 से 5 तक पढ़ाई जाएगी। विवाद गलतफहमी से उपजा है, क्योंकि पिछले ढांचे के तहत कक्षा 5 से 7 तक हिंदी पहले से ही अनिवार्य विषय थी।
उन्होंने कहा- कक्षा 5, 6 और 7 के लिए हिंदी पहले से ही अनिवार्य थी। अब कक्षा 6 से उस अनिवार्यता को हटाया जा रहा है। हिंदी केवल प्राथमिक स्तर पर – कक्षा 1 से 5 तक – पढ़ाई जाएगी ताकि छात्रों को भाषा की बुनियादी समझ मिल सके, जो पूरे देश में व्यापक रूप से बोली जाती है।
केसरकर ने कहा कि मराठी और हिंदी दोनों देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं, इसलिए उनमें पहले से ही कुछ समानता है। एक गलतफहमी थी – हिंदी के लिए बाध्यता पहले से ही थी। अब इसमें ढील दी जा रही है।
मराठी को 2024 में मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा
महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम 1964 के मुताबिक राज्य में प्रस्ताव, पत्र और परिपत्र समेत सभी आधिकारिक दस्तावेज मराठी में होने चाहिए। 2024 में स्वीकृत हुई मराठी भाषा नीति ने भाषा के संरक्षण, संवर्धन, प्रसार और विकास के लिए सभी सार्वजनिक मामलों में मराठी के इस्तेमाल की सिफारिश की थी।
पिछले साल अक्टूबर में, केंद्र सरकार ने लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया। केंद्र ने कहा था कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से खास तौर पर एजुकेशन और रिसर्च फील्ड में रोजगार अवसर बढ़ेंगे।

पहली क्लास के स्टूडेंट्स तीन भाषाएं पढ़ेंगे
थ्री लैंग्वेज पॉलिसी भी फेज-वाइज ही लागू की जाएगी। आने वाले एकेडमिक ईयर से राज्य के पहली क्लास के स्टूडेंट्स तीन भाषाएं पढ़ेंगे।
करिकुलम के नए फ्रेमवर्क के अनुसार, महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की टेक्स्ट बुक्स NCERT के करिकुलम पर आधारित होंगी। हालांकि, सोशल साइंस और लैंग्वेजेस की बुक्स में महाराष्ट्र का लोकल कॉन्टैक्स्ट जोड़ा जाएगा। इसी के हिसाब से पहली क्लास की टेक्स्ट बुक्स बालभारती द्वारा पब्लिश की जाएंगी। बालभारती स्टेट का टेक्स्ट बुक ब्यूरो है।

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