Nishikant Dubey; President Vs Supreme Court Power | Judiciary JP Nadda BJP | BJP सांसद बोले- सुप्रीम कोर्ट सीमाओं को लांघ रहा: देश में गृहयुद्ध के लिए CJI जिम्मेदार; नड्डा बोले- निशिकांत दुबे के बयान से पार्टी का लेना-देना नहीं
Hindi News National Nishikant Dubey; President Vs Supreme Court Power | Judiciary JP Nadda BJP नई दिल्ली35 मिनट पहले कॉपी लिंक भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि, अब जब संसद बैठैगी तो इस मुद्दे को उठाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए एक समय सीमा तय करने का…
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नई दिल्ली35 मिनट पहले
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भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि, अब जब संसद बैठैगी तो इस मुद्दे को उठाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए एक समय सीमा तय करने का विवाद बढ़ता जा रहा है। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने ऐतराज जताया है। सांसद ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। ऐसे में आप (CJI) किसी अपॉइंटिंग अथॉरिटी को निर्देश कैसे दे सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘संसद इस देश का कानून बनाती है। क्या आप उस संसद को निर्देश देंगे। देश में गृह युद्ध के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। वहीं धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है।’
उन्होंने कहा- कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है। अगर हर किसी को सारे मामलों के लिए सर्वोच्च अदालत जाना पड़े तो संसद और विधानसभा बंद कर देनी चाहिए।
वहीं, निशिकांत के बयान से बीजेपी ने किनारा किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा- निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है। यह इनका व्यक्तिगत बयान हैं।
दरअसल ये मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। वहीं बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था।
निशिकांत ने धारा 377, आईटी एक्ट और मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए

आर्टिकल 377: एक आर्टिकल 377 था, जिसमें समलैंगिकता एक अपराध था। अमेरिका में ट्रम्प सरकार ने कहा कि दुनिया में केवल दो ही लिंग है, एक- पुरुष, दूसरा- महिला। तीसरे की कोई जगह नहीं है। जितने भी धर्म हैं, चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, जैन हो, सिख हो, ईसाई हो। सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है। सुप्रीम कोर्ट एक सुबह उठती है वे कहते हैं कि हम यह आर्टिकल खत्म करते हैं। हमने आईटी एक्ट बनाया। जिसके तहत महिलाओं और बच्चों के पोर्न पर लगाम लगाने का काम किया गया। एक दिन सुप्रीम कोर्ट कहता है कि वे 66A आईटी एक्ट को खत्म कर रहे हैं।
आर्टिकल 141: मैंने आर्टिकल 141 का अध्ययन किया है। यह आर्टिकल कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं वो लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होता है। आर्टिकल 368 कहता है कि इस देश की संसद को कानून बनाने का अधिकार है और इसकी व्याख्या करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है।
मंदिर-मस्जिद विवाद: हमारे देश में सनातन की परंपरा रही है। लाखों साल की परंपरा है। जब राम मंदिर का विषय आता है तो आप कहते हैं कि कागज दिखाओ। कृष्णजन्मभूमि का मामला आएगा तो कहेंगे कि कागज दिखाओ। यही बात ज्ञानवापी केस में कहेंगे। इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है।
भाजपा ऐसे बयानों का समर्थन नहीं करती
नड्डा ने X पोस्ट में लिखा- भाजपा ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। भाजपा इन बयान को सिरे से खारिज करती है। पार्टी ने सदैव ही न्यायपालिका का सम्मान किया है, उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है, क्योंकि एक पार्टी के नाते हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं। संविधान के संरक्षण का मजबूत आधारस्तंभ हैं। मैंने इन दोनों को और सभी को ऐसे बयान ना देने के लिए निर्देशित किया है।
निशिकांत के बयान पर विपक्ष और पूर्व जज का रिएक्शन

- कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा, जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे कई मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने जो किया है वह असंवैधानिक है।
- कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, अगर कोई सांसद सुप्रीम कोर्ट या किसी भी अदालत पर सवाल उठाता है तो यह बहुत दुख की बात है। हमारी न्याय व्यवस्था में अंतिम फैसला सरकार का नहीं, सुप्रीम कोर्ट का होता है। अगर कोई यह बात नहीं समझता है तो यह बहुत दुख की बात है।
- आप प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा, “उन्होंने (निशिकांत दुबे) बहुत घटिया बयान दिया है। मुझे उम्मीद है कि कल ही सुप्रीम कोर्ट भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू करेगा और उन्हें जेल भेजेगा।
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अशोक कुमार गांगुली ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, अगर ऐसा नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को यह समझने की जरूरत है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
विवाद पर अब तक क्या हुआ…
17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी।
धनखड़ ने कहा था- “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।” पूरी खबर पढ़ें…
18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।’
सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- ‘लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।’ पूरी खबर पढ़ें…
8 अप्रैल: विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।
इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। पूरी खबर पढ़ें…
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350 कमरे वाले महल में रहती हैं भारत की राष्ट्रपति: 9 टेनिस कोर्ट, 11 करोड़ की कार

नई दिल्ली में रायसीना हिल पर राजपथ के पश्चिमी किनारे पर स्थित राष्ट्रपति भवन 330 एकड़ में फैला है। यह कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भवन के गलियारों की कुल लंबाई 2.5 किलोमीटर है। राष्ट्रपति भवन में 9 टेनिस कोर्ट, एक पोलो ग्राउंड, गोल्फ ग्राउंड्स और एक खूबसूरत मुगल गार्डन है। पढ़ें पूरी खबर…